संसार की कै भि बोली-भाषा का साहित्य की सबसे बड़ी सामर्थ्य होंद वेकी संप्रेषणता अर साहित्य की संप्रेषणता को सबसे बड़ों कारण होंद वे साहित्य मा संचारित होण वल़ि संवेदना, प्रकट होण वला़ भाव। अर भाव एवं भावोनुभूति की शब्दों का माध्यम से अभिव्यक्ति से रचना होंद कविता की। या फिर इनो भि ब्वले सकेंद कि कविता तैं जन्म देंदी ‘भाव’, वो भाव जो जन्म ल्हेंदी ‘मन’ मा, जै खुणि गढवल़ि मा ब्वलदॉं हम ‘ज्यू’। ‘ज्यू त ब्वनू च’ कविता संग्रह मा भी हम तैं कवि अनूप रावत का ज्यू याने मन मा जन्म ल्हेंदा भाव अर यूं भावों से जन्म ल्हेदीं कविता ही नज़र औंदिन्। अर शायद ये ही कारण से गढवल़ि का वरिष्ठ साहित्यकार मदन मोहन डुकलान यीं किताब की भूमिका को शीर्षक रखदन ‘क्वांसा पराणै कुंगलि कविता’ याने भावुक ह्रदय की कोमल कविताएँ।
‘ज्यू त ब्वनू च’ कवि अनूप रावत की पैलि पुस्तक च अर अपणा ये पैला कविता संग्रह मा वो बनि बनि की बावन कविताओं तै ल्हेकि पाठकों का समणि औणा छन। कवि को मूल स्वर पयालन च जनकि यीं पुस्तक का वास्ता द्वी शब्द लिखद दौं वरिष्ठ दिनेश ध्यानी जी भी रेखांकित कर्ना छन।पर दगड़ मा कवि जन्मभूमि का प्रति वेको प्रेम, वखा समाज से वेको जुड़ाव अर वखै संस्कृति से वेको लगाव तैं भी लगातार अपणी रचनाओं का माध्यम से अभिव्यक्त कर्नू च। वे तैं अपणा घर-गौं की ‘खुद’ लगणी च अर इलै वो ल्यखणू कि:
ज्यू त ब्वनू च कि
सट्ट से जौं ब्वे की खुचिलि मा
सब दु:ख विपदौं तै बिसरि
पर क्य कन मी दूर परदेश
अर मेरि ब्वे च दूर डॉंडा घार
-‘ज्यू त ब्वनू च’ बटे
कवि अनूप रावत भले आज भैर ऐकि रैणू च पर वेको ज्यू (मन) आज भी पहाड़ मा हि च। पहाड़ का प्रति आज भी वो सचेत च। वखै हर साहित्यिक, सामाजिक व राजनैतिक घटना पर वेकि पैनी नज़र च।तबि त उतराखण्ड राज्य को अपेक्षित विकास नि ह्वे यीं बात से कवि को युवा ह्रदय आक्रोशित च अर वो जन प्रतिनिधियों से सीधा सवाल कर्नू च कि
खैरि खॉंदा-खॉंदा ग़रीब मिटिगे
ग़रीबी मिटेली, ब्वाला कब तक
देरादूण बल खूब हूणी च बैठक
विधायक जी पहाड़ आला, ब्वाला कब तक
– ‘ब्वाला कब तक’ बटे
हर छ्वटा बड़ा काम मा शराब को प्रचलन आज उत्तराखण्ड मा आम बात ह्वेगे। ‘सूर्य अस्त अर पहाड़ मस्त’ की समस्या से त्रस्त पहाड़ी समाज की यीं वेदना से अनूप रावत को कवि हृदय भी अछूतो नी च। दारू दैंत्य पर कवि अनूप लिखद कि…
यीं निरभै दारूल मेरू गौं-मुलुक लुटियाली
पींण वलों की डुबै, बेचण वलों की बणैयाली
पक्की बिकणी च खुलेआम बजारों मा
कच्ची बणणी च दूर डॉंडा धारू मा
बणीं मवसी यीं दारुल घाम लगै याली
-‘निरभै दारु’ बटे
शराब का दगडै़-दगड़ कन्या भ्रूण हत्या, देहज व अन्धविश्वास जनी कतनै सामाजिक बुराइयों पर भी ये कविता संग्रह मा अनूप रावत की क़लम चलयीं च।दगड़ मा वो चकबन्दी जना जन जागृति अर सामाजिक चेतना का मुद्दा पर भी चुप नी बैठदा।
युवा कवि हूणा का नाता उम्मीद छै कि कुछ श्रृंगार रस की कविता ये संग्रह मा होली पर ये मामला मा शायद अनूप अभि जरा पेथर च पर ब्यंग्य व हास्य रस की कुछ कविता ज़रूर यीं पोथि मा पढ़णा खुणि मिलदन्। जनकि:
बजार गयुं तो गजब देखा
चौमीन मोमो बर्गर बिकते देखे
च्या बणाएगा अब तो कौन
पेप्सी लिम्का कोक बैठि पीते देखे
हकबक तो तब रै गया मैं जब
ह्यूंद में आईसक्रीम खाते देखे
-‘कतगा बदल गया अब उत्तराखण्ड’ बटे
भाषा-शैली की दृष्टि से ‘ज्यू च ब्वनू च’ मा भौत ही सरल अर आम बोलचाल की भाषा को इस्तेमाल कवि अनूप रावत को कयूं च। कखि कखिम वूंकी स्थानीय बोली को प्रभाव ज़रूर च पर नयी पीढ़ी आसानी से बींग जावा कवि इनो प्रयास करदो नज़र आणू च तबि त इंग्लिश अर हिन्दी का शब्द भी यत्र-तत्र दिखे जंदिन। दगड़ मा कुछ नया बिम्ब व प्रतीक भी यीं पोथि मा प्रयोग हुयॉं छन जो कि नया जमना अर नयी सदी का हिसाब से स्वाभाविक भी छन अर सटीक भी।
कुल मिलैकि, 52 कविताओं को यो कविता संग्रह 21वीं सदी का एक युवा कवि की गढ़-साहित्य सृजन का यज्ञ मा पैली अग्याल़ च अर उम्मीद च कि वो अपणी यीं सृजन यात्रा तैं निरन्तर अगनै बढाणा राला अर साहित्य को भण्डार भ्वना राला।
इनी शुभकामनाओं का दगड़
-आशीष सुन्दरियाल
Garhwali Poetry Book
Title: Jyu Ta Bwanu Cha
Poet: Anoop Singh Rawat
Publisher: Rawat Digital
ISBN No.: 978-81-940719-0-7
Edition: 2019 (First)
No. of Pages: 96
over Page: Atul Gusain ‘Jakhi’
Book Designer: Dhirendra Singh Rawat
Binding:
Perfect (Paperback)
2 Replies to “Khaichatani”
Nice
Thanks